आत्म-आनंद में लिप्त होकर, मैंने अपनी उंगलियों से अपनी नाजुक सिलवटों को कामुकता से सहलाया, अपने आप को एक आकर्षक स्वाद में लिप्त किया। आत्म-प्रेम की परमानंद सामने आई, जैसा कि मैंने अपनी इच्छाओं के अंतरंग अन्वेषण में प्रकट किया था।.
अपने ही सार के मधुर अमृत में लीन होकर मैं अपनी पंखुड़ियों को निष्कपटता से फैलाती, अपनी जीभ को अपने उग्र फूल की गहराइयों में नाचने के लिए आमंत्रित करती। मेरी नारीत्व का मादक स्वाद, एक मोहक अमृत जिसे मैं ही अपने आप को पेश कर सकती हूँ, अपनी इच्छा को भड़काती है। प्रत्येक चाट मेरे शरीर से आनंद की लहरें भेजती है, एक ऐसी लौ को प्रज्वलित करती है जिसे केवल मैं ही निगल सकती हूँ। मेरी संवेदनशील त्वचा के विरुद्ध मेरी जीभ की कोमल दुलार परमानंद की कराहों को प्रज्ज्वित करती है, हर एक को उत्कृष्ट आनंद का वसीयतनामा अनुभव कर रही है। यह अंतरंग नृत्य, आनंद की एक सिम्फनी जो केवल मैं ही आचरण कर सकती हूं, मेरी कामुकता का उत्सव है। प्रत्येक थरथरा, हर गैस्पी, प्रत्याशा की हर बूंद आत्म-आन्ति की शक्ति का प्रमाण है। यह मेरा कर्मकाव्य है, मेरी रस्म, मेरी प्रेमरसता, प्रेमरस और आत्म-प्रेम की नर्तन है। यह मेरी आत्म-अभिव्यक्ति है, आत्म-अवलोकनन्दन के लिए एक परीक्षा है।.