रानी का दर्पण में प्रतिबिंब उसे चिढ़ाता है, जिससे एक अंतरंग मुठभेड़ होती है। वह आत्म-आनंद में लिप्त होती है, अपने स्तनों को सहलाती है और अपने प्रतिबिंबों की गांड की मालिश करती है। प्रतिबिंब उसकी चूत को चाटता है, जो एक तीव्र संभोग सुख को प्रज्वलित करता है।.
दर्पण में रानी के प्रतिबिंब ने उसे इशारा किया, अपने स्वयं के आकर्षण की एक मनमोहक दृष्टि। उसके दिल में एक आग सी लग गई थी, एक ऐसी इच्छा को प्रज्वलित करते हुए कि केवल वह ही बुझा सकती थी। वह अपने प्रतिबिंब के चुंबकीय खिंचाव के प्रति समर्पित हो गई, उसकी उंगलियां उसके प्रतिबिंब रूप के आकृति का पता लगा रही थीं। दर्पण उसकी छवि को विकृत कर रहा था, उसके उभारों को उत्तेजित कर रहा था और उसे अपनी ही कामुकता की गहराइयों में आगे बढ़ा रहा था। उसने अपने होंठों पर अपने प्रतिबिंब का स्वाद, अपनी उंगलियों के नीचे उसकी प्रतिबिंब त्वचा का अहसास, कमरे में उसके प्रतिबिंब गूंज रहे थे, आनंद की एक सिम्फनी जो उसके भीतर गूंज रही थी। वह प्रतिबिंबित आंखों में, अपनी ही जुनून की गहराई में खो गई थी, उसकी पीठ पर परिलक्षित। प्रत्येक स्पर्श, प्रत्येक चुंबन, अपनी इच्छा का एक प्रतिबिंब था, अपनी ही इच्छा से ढह गया था, अपने ही दर्पण में खोई हुई मोहकता, अपनी ही मोहकता की सुंदरता को प्रतिबिंबित कर रहा था। वह अपने स्वयं के प्रलोभन को प्रतिबिंबित करती थी, अपनी ही प्रलोभनों की मोहकता को दर्शाती हुई।.